कर्नाटक काडर के आईएएस अफसर मोहम्मद मोहसिन ने प्रधानमंत्री मोदी का हेलिकाप्टर चेक कर लिया. अचानक हुई इस चेकिंग के कारण प्रधानमंत्री के उड़ने में 15 मिनट की देरी हो गई.
क्या ऐसा कोई कानून है कि चुनाव की ड्यूटी पर तैनात अधिकारी प्रधानमंत्री के काफिले की गाड़ी चेक नहीं कर सकता है? अगर ऐसा कोई कानून है तो चुनाव आयोग को पब्लिक को इसके बारे में बताना चाहिए. और अगर किसी अधिकारी ने हेलिकाप्टर की जांच कर दी तो क्या यह इस हद तक का अपराध है कि उस अधिकारी को निलंबित कर दिया जाए.
कर्नाटक काडर के आईएएस अफसर मोहम्मद मोहसिन ने प्रधानमंत्री मोदी का हेलिकाप्टर चेक कर लिया. अचानक हुई इस चेकिंग के कारण प्रधानमंत्री के उड़ने में 15 मिनट की देरी हो गई. चुनाव आयोग ने मोहम्मद मोहसिन को निलंबित कर दिया और कहा कि स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप की सुरक्षा घेरे में रहने वाले लोगों की जांच की प्रक्रिया के अनुसार उन्होंने काम नहीं किया. मोहम्मद मोहसिन 1996 बैच के अधिकारी हैं. इस आदेश में लिखा है कि मोहम्मद मोहसिन ने एसपीसी के संबंध में चुनाव आयोग के 22 मार्च 2019 और 10 अप्रैल 2014 के आदेश के अनुरूप कार्य नहीं किया है. विभिन्न नियमों का हवाला देते हुए लिखा है कि चुनाव आयोग इस अधिकारी को निलंबित करता है.
हम आपको बता दें कि एसपीजी सुरक्षा सिर्फ प्रधानमंत्री, राहुल गांधी, सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी को है. पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को है. इसके बाद एक दूसरी कैटगरी होती है एनएसजी की. इसमें करीब 13 लोग ही होते हैं. गृहमंत्री राजनाथ सिंह हैं, चंद्रबाबू नायडू, प्रफुल्ल कुमार महंत, योगी आदित्यनाथ, अखिलेश यादव, मुलायम सिंह यादव, आडवाणी और मायावती. हमारे सहयोगी अरविंद गुनाशेखर ने जब आयोग से पूछा कि किस आधार पर प्रधानमंत्री का हेलिकाप्टर चेक करने के कारण आईएएस अफसर को सस्पेंड किया गया है तो आयोग ने 10 अप्रैल 2014 के आदेश का हवाला दिया कि एसपीजी की सुरक्षा वालों की चेकिंग नहीं होगी. हमारे सहयोगी अरविंद गुनाशेखर का कहना है कि 10 अप्रैल 2014 के आदेश को ध्यान से पढ़ा है.
10 अप्रैल 2014 के आदेश में यह ज़रूर लिखा है कि चुनाव अभियान या चुनाव से संबंधित किसी भी काम में सरकारी वाहनों का इस्तमाल पूरी तरह प्रतिबंधित है. मगर प्रधानमंत्री व अन्य राजनीतिक शख्सियतों को छूट है कि वे सरकारी वाहनों का इस्तमाल कर सकते हैं. क्योंकि इन्हें आतंकी और चरमपंथी गतिविधियों से ख़तरा होता है और उच्च स्तरीय सुरक्षा की ज़रूरत होती है. जिनकी सुरक्षा संसद या विधानसभा के बनाए संवैधानिक प्रावधानों से होती है.
तो यह बात साफ हो जाती है कि 10 अप्रैल 2014 का आदेश यह कहीं नहीं कहता है कि एसपीजी सुरक्षा घेरे में व्यक्ति के सरकारी हेलिकाप्टर की तलाशी नहीं ली जा सकती है. अरविंद का कहना है कि चुनाव आयोग ने जिन नियमों का हवाला किया है, उनका कागज़ पर वजूद ही नहीं है. तो क्या मोहम्मद मोहसिन को अपनी ड्यूटी करने की सज़ा दी गई है, क्या ये सज़ा इसलिए दी गई है कि उन्होंने प्रधानमंत्री के हेलिकाप्टर की तलाशी ले ली. समस्या ये है कि अब पत्रकार डिटेल नहीं पढ़ते. हिन्दी अखबारों में तो भूल ही जाइये कि कुछ छपेगा भी. चैनल का हाल तो आप जानते हैं. अरविंद गुनाशेखर ने उन आदेश पत्रों को पढ़ा है जिसे चुनाव आयोग ने दिया है. और जब पढ़ा है तो पता चला है कि कहीं नहीं लिखा है कि एसपीजी सुरक्षा होने के नाते प्रधानमंत्री के हेलिकाप्टर की तलाशी नहीं होगी. अब मैं 10 अप्रैल 2014 के आदेश का एक और हिस्सा पढ़ना चाहता हूं. आप इसे ध्यान से पढ़िए. इसमें लिखा है कि अगर कभी इस बात को लेकर ज़रा भी संदेह हो कि एसपीजी एक्ट या अन्य विशेष प्रावधानों के तहत अथॉरिटी ने सुरक्षा का मूल्यांकन बढ़ा चढ़ा कर इस तरह से किया है कि उन वाहनों से किसी पार्टी या उम्मीदवार के पक्ष में चुनावी हितों को प्रभावित किया जा सके तो आयोग इस मामले को संबंधित सरकार की नज़र में लाएगा ताकि उचित कदम उठाया जा सके.
संबिधित सरकार का मतलब हुआ कि कई बार मुख्यमंत्री भी एसपीजी सुरक्षा घेरे में हो सकते हैं तो राज्य सरकार को लिखा जाएगा कि उनकी समीक्षा या मूल्यांकन करना है कि एसपीजी वाहन सही में ज़रूरी है या नहीं. इस केस में गृहमंत्रालय को लिखा जा सकता था. हमने चुनाव आयोग के आदेश का हिन्दी में शब्दश: अनुवाद नहीं किया है. कहीं कहीं भाव का भी किया है. यह सारी मेहनत हमारे सहयोगी अरविंद गुनाशेखर की है, जिसे मैं पेश कर रहा हूं. अरविंद को हिन्दी नहीं आती और मुझे अंग्रेज़ी नहीं आती. मगर बात जो सही होती है वो भाषा के नाम पर रुक नहीं पाती. अरविंद ने बताया है कि 14 जुलाई 1999 का एक आदेश है चुनाव आयोग का. इसमें लिखा है कि तलाशी से किसी भी सरकारी विमान या हेलिकाप्टर को छूट नहीं दी गई है. तो क्या चुनाव आयोग ने एक ऐसे प्रावधान के सहारे मोहम्मद मोहसिन को निलंबित किया है जो प्रावधान है ही नहीं. अरविंद बता रहे हैं कि चुनाव आयोग जिस 10 अप्रैल 2014 के आदेश का हवाला दे रहा है उसमें लिखा ही नहीं है कि एसपीजी सुरक्षा प्राप्त व्यक्ति के हेलिकाप्टर की जांच नहीं होगी.
अरविंद ने बताया कि चुनाव आयोग के अधिकारियों ने गांधी परिवार के हेलिकाप्टर की भी तलाशी ली है. ये अहमद पटेल ने ट्वीट किया है. चुनाव आयोग के सूत्रों ने बताया कि प्रधानमंत्री रहते मनमोहन सिंह का भी सर्च हुआ है. अब एक सवाल और है. चुनाव आयोग ने यह एक्शन किसकी शिकायत पर किया है. चुनाव आयोग ने जो निलंबन किया है उसके आदेश में शिकायत कर्ता का ज़िक्र नहीं है. यह भी नहीं लिखा है कि ओडिशा के मुख्य निर्वाचन अधिकारी चीफ इलेक्टोरल आफिसर ने शिकायत भेजी है, रिपोर्ट भेजी है. तो क्या चुनाव आयोग ने खुद से कार्रवाई कर दी, अपने आदेश की पब्लिक कॉपी में यह सब क्यों नहीं है. चुनाव आयोग ने 22 मार्च 2019 के ऑर्डर का हवाला दिया है मगर इसमें भी यही लिखा है कि
कमर्शियल एयरपोर्ट पर चेकिंग के संबंध में
चुनावी प्रक्रिया के दौरान व्यक्ति और सामान की जांच और तलाशी से संबंधित जितने भी नियम और प्रक्रियाएं हैं उनका सख्ती से पालन होना चाहिए. इसमें किसी को छूट नहीं मिलनी चाहिए. जिन्हें छूट मिली है उन्हें छोड़ कर सभी यात्रियों और उनके सामानों की विमान में चढ़ते वक्त या एयरपोर्ट में प्रवेश करने से पहले जांच होगी.
इस आदेश में कहीं नहीं लिखा है कि एसपीजी प्रोटेक्शन हासिल व्यक्ति को छूट है. एक और बात 22 मार्च 2019 का आदेश कमर्शियल एयरपोर्ट से संबंधित है. संबलपुर में कर्मशियल एयरपोर्ट नहीं है. मोहम्मद मोहसिन ने रैली स्थल पर तलाशी ली थी. तो क्या मोहम्मद मोहसिन को अपनी ड्यूटी की सज़ा मिली है. वैसे मोहसिन ने साहसिक कदम उठाया और चुनाव के दौरान व्यवस्था में भरोसा बढ़ाने वाला कदम उठाया है. एक ऐसे वक्त में जब नौकरशाही की पहचान कमज़ोर और डरपोक की है, ऐसे कदम लंबे समय तक नौकरशाही में बैठे लोगों को आत्मबल और नैतिकबल का सोर्स बन जाते हैं. चुनाव आयोग की प्रेस कांफ्रेंस में यह सवाल उठा कि आयोग को किसने शिकायत की तो आयोग ने कहा कि फील्ड अफसर और ओडिशा के मुख्य चुनाव कार्यकारी से सूचना मिली थी. चुनाव आयोग ने निलंबन कर दिया है लेकिन अब एक अधिकारी को मौके पर भेजा जा रहा है जांच के लिए. क्या पहले नहीं भेजा जाना चाहिए था तब एक्शन लिया जाता.
आपको याद होगा कि महाराष्ट्र के लातूर में प्रधानमंत्री मोदी ने अपने चुनावी भाषण में कहा था कि क्या पहली बार वोट करने जा रहे मतदाता अपना वोट पुलवामा के शहीदों और एयरस्ट्राइक में शामिल वीर जवानों को समर्पित नहीं कर सकते. अभी तक प्रधानमंत्री के बयान पर कोई फैसला नहीं आया है. चुनाव आयोग को बताना चाहिए कि देरी क्यों हो रही है, क्या वह प्रधानमंत्री के मामले में एक्शन लेने में उसी तरह से तत्पर और निष्पक्ष नज़र आ रहा है, यह सवाल पूछे जाने का वक्त है. आज जब आयोग के प्रेस कांफ्रेंस में यह पूछा गया था कि लातूर वाले बयान पर क्या कार्रवाई की गई तो आप हैरान रह जाएंगे. आयोग ने जवाब दिया कि शुरू में उनके भाषण का एक पैरा आया था. अब प्रमाणित भाषण की कापी आ गई है और जांच हो रही है. चुनाव आयोग का यह जवाब है. 9 अप्रैल को प्रधानमंत्री ने लातूर में भाषण दिया था. 18 अप्रैल है. 9 दिन में आयोग कार्रवाई नहीं कर पाया है.
जब पत्रकारों ने पूछा कि वो आदेश कहां है जिसमें ये लिखा है कि एसपीजी सुरक्षित प्रधानमंत्री के हेलिकाप्टर की तलाशी नहीं होगी तो यही जवाब मिला कि हम चेक करेंगे और आपको बताएंगे. राज्यपाल कल्याण सिंह के बारे में राष्ट्रपति को सिफारिश की गई थी कि वे कार्रवाई करें, अभी तक कोई सूचना नहीं है. ये सारे सवाल हिन्दी अखबारों से गायब किए जा रहे हैं ताकि जनता अंधेरे में रहे. आप कुछ करें न करें, अखबारों को ध्यान से पढ़ें कि वहां कैसे खेल हो रहा है.
अब ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के हेलिकाप्टर के विजुअल का जिक्र करते हैं. वीडियो में दिखर रहा है कि उनके हेलिकाप्टर की जांच होती है. नवीन पटनायक कोई विरोध नहीं करते हैं. चुपचाप बैठे हैं. एक एक सामान खोलकर उनकी जांच होती है. यह वीडियो 17 अप्रैल का है और राउरकेला का है. नवीन पटनायक ने कोई शेखी नहीं दिखाई. चुनाव अधिकारियों को पूरा मौका दिया कि वे अपनी तसल्ली के मुताबिक जांच कर लें. एक और वीडियो है धर्मेंद्र प्रधान का. जब चुनाव अधिकारी जांच के लिए पहुंचे तो धर्मेंद्र प्रधान ने क्या किया.
मध्य प्रदेश से अनुराग द्वारी ने एक खबर भेजी है. राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने कांग्रेस के उन विज्ञापनों पर रोक लगा दी है जिस पर चौकीदार चोर है लिखा है. जबकि राहुल गांधी और कांग्रेस के नेता रैलियों में खूब नारे लगा रहे हैं उन पर रोक नहीं है. फिर किस नियम के तहत चौकीदार चोर है पर रोक लगाई गई ह. आयोग ने सभी ज़िलाधिकारियों को लिखे पत्र में कहा है कि चौकीदार चोर है विज्ञापन को राज्य स्तरीय मीडिया प्रमाणन और अनुवीक्षण समिति द्वारा निरस्त किया गया है. इसलिए कलेक्टर अपने अपने ज़िले में इसके प्रसारण पर रोक सुनिश्चित करें.
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